सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट पर (चाइल्ड पोर्नोग्राफी) बच्चों से संबंधित यौन साम्रगी के प्रसार को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सोमवार को कहा कि बाल पोर्नोग्राफी देखना,दिखाना,अपने फोन या लैपटॉप में संरक्षित करना अपराध के श्रेणी में आएगा I यह अपराध पॉक्सो एक्ट के धारा 15 के साथ साथ आईटी अधिनियम की धारा 71 के अंतर्गत आएगा । मुख्य न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने गृह मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो और अमेरिका स्थित गैर सरकारी संगठन नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रन के बीच समझौता ज्ञापन का हवाला दिया। इसके साथ साथ उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को न्यायपालिका को ‘बाल पोर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल करने से भी रोक दिया और संसद से अनुरोध किया कि वह पोक्सो अधिनियम में संशोधन कर ऐसी सामग्री को “चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लाॅएटेटिव एंड एब्यूसिव मटेरियल टर्म” (CSEAM) का प्रयोग करें।
उन्होंने यहाँ भी कहा की , “संसद को ‘बाल पोर्नोग्राफी’ शब्द के स्थान पर (CSEAM) शब्द लाने के लिए पोक्सो अधिनियम में संशोधन लाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, ताकि ऐसे अपराधों की वास्तविकता को अधिक सटीक रूप से दर्शाया जा सके। इस बीच, केंद्र सरकार अध्यादेश के माध्यम से उपरोक्त प्रभाव के लिए पोक्सो अधिनियम में संशोधन करने पर विचार कर सकती है।”
बाल यौन शोषण पर अपनी चिंताओं को स्पष्ट करते हुए पीठ ने कहा, “यौन शोषण का कोई भी कृत्य स्वाभाविक रूप से सख्त दृष्टिकोण बच्चे पर शारीरिक और भावनात्मक आघात पहुंचाना ही अंतिम परिणाम देता है। हालांकि, पोर्नोग्राफिक सामग्री के माध्यम से दुर्व्यवहार के इस कृत्य का प्रसार आघात को और गहरा कर देता है और मनोवैज्ञानिक निशान में बदल देता है।
पीठ ने कहा, “बच्चों को ऐसे माहौल में बड़ा होने का हक है जो उनकी गरिमा का सम्मान करता हो और उन्हें नुकसान से बचाता हो।” इस विषय पर यूनिसेफ के चाइल्ड प्रोटेक्शन के स्टेट कंसल्टेंट डा० अमन कुमार ने बताया कि “बच्चे राष्ट्र के भविष्य होते हैं अगर हम उन्हें संरक्षित नहीं कर पा रहे हैं तो बाकी चीजों के संरक्षण के कोई मायने नहीं रह जाते हैं।”
दरअसल केरल हाईकोर्ट ने 13 सितंबर 2023 को कहा था कि अगर कोई व्यक्ति अश्लील फोटो या वीडियो देख रहा है तो यह अपराध नहीं है,जब तक वह दूसरे को न दिखाएं। इसी फैसले के आधार पर मद्रास हाईकोर्ट ने 11 जनवरी 2024 को कहा था कि अगर कोई ऐसी सामग्री डाउनलोड करता है और देखता है,तो यह अपराध नहीं है,जब तक कि उसकी नीयत उसे प्रसारित करने कि न हो। इसी बात के आधार पर मद्रास हाईकोर्ट ने 11 जनवरी 2024 को एक आरोपी को दोषमुक्त किया था।इस फैसले के खिलाफ एक समाजसेवी (NGO) संस्था सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कहा है कि अदालती फैसलों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द का इस्तेमाल नहीं होगा,साथ ही भले ही ऐसी सामग्री का प्रसार न किया गया हो पर इसे रखना भी अपराध कि श्रेणी में आएगा।