सुख- शांति,समृद्धि एवं मोक्षदायिनी है स्कंदमाता-चाँदनी शुक्ला

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जाँजगीर चाम्पा — नवरात्रि के पांँचवे दिन आज माँ दुर्गा के पांँचवे स्वरुप स्कंदमाता की पूजा-आराधना- उपासना की जाती है। स्कंदमाता की पूजा करने से साधन , ध्यान और उपासना में सफलता प्राप्त होती है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। स्कंदमाता सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। इसलिये स्कंदमाता की उपासना करने वाले साधक सदा तेजस्वी और निरोगी रहते हैं। इनकी कृपा से बुद्धि का विकास , ज्ञान का आशीर्वाद और समस्त व्याधियों का अंत हो जाता है। आज के दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। आज माँ को चम्पा के पुष्प के साथ साथ श्रृंगार में हरे रंग की चूड़ियाँ अर्पित करें। कालिदास द्वारा रचित रघुवंश महाकाव्यम् और मेघदूत रचनायें स्कंदमाता की कृपा से ही स़ंभव हुई है। पूरी नवरात्रि दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिये।

स्कंदमाता नाम क्यों पड़ा ?

पार्वती और शिव के पुत्र है स्कंद(कार्तिकेय) जो प्रसिद्ध देव असुर संग्राम मे सेनापति बने थे।पौराणिक कथाओं के अनुसार इन्हें कुमार और शक्ति कहा गया है। इन्ही स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण ही इन्हे माँ के पाँचवाँ स्वरूप स्कंदमाता कहा गया है।

स्कंदमाता का स्वरुप

स्कंदमाता (चतुर्भूज) चार भुजाओं वाली हैं। ये अपने दो हाथों मे कमल पुष्प धारण की हुई हैं।और अपने तीसरे हाथ मे कुमार स्कंद (कार्तिकेय) को सहारा देकर बैठायी हैं। इनका चौथा हाँथ भक्तों के कल्याण के लिये है अर्थात वरमुद्रा में है। माँ अपने इस स्वरुप मे पूर्णत: ममतामयी हैं। देवी स्कंदमाता ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती हैं।इन्हे शिव की पत्नी होने के कारण मातेश्वरी कहा गया तथा इनके गौर वर्ण के कारण इन्हे देवी गौरी कहा गया है। माँ का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है और कमल पर विराजमान रहती हैं इसलिये इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। स्कंदमाता का वाहन सिंह है।स्कंदमाता सदैव ही अपने भक्तो के लिये कल्याणकारी हैं। इनकी उपासना से भक्त की समस्त इच्छायें पूर्ण हो जाती है।

स्कंदमाता का मन्त्र-

सिंहासन गता नित्यं पद्माश्रितकर्द्वया
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता याशश्विनी ॥

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
 
माँ दुर्गा के सामने दीप प्रज्वलित कर षोडशोपचार पूजन करने के बाद इस मन्त्र के साथ “ऊँ स्कंदमात्रै नम:” का जप अवश्य करना चाहिये तब भगवान स्कंद ( कार्तिकेय) सहित माता की कृपा प्राप्त होगी।
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिये आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिये इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिये।

स्कन्दमाता की ध्यान

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्कन्दमाता की स्तोत्र पाठ

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥

स्कन्दमाता की कवच

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥
वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥

Ravi sharma

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