मुझे आजकल नींद आती हैं कम-डॉ॰ मनोज कुमार

डा० मनोज कुमार

गुलाबी रंग के पर्दे व हल्के आसमानी रंग से सजी दीवारें भी सनाया को जगा रही थी।एसी की ठंडी हवाएं भी उसके पलकों को भारी नही कर पा रही थी।करवट बदल-बदल कर पिछले कुछ महीने से निद्रा के लिए बेसब्री से इंतजार उसमे चिड़चिड़ाहट भर रहा था।कभी ठंडे पानी से सिर धोती तो कभी बालकनी में चहलकदमी करती. सनाया पटना के गोलघर की बायीं ओर बने रैनबसेरे को देख रही थी।कुछ मजदूर चैन की नींद ले रहे थे। काश उनके जैसी उसे भी निंद आ जाती।दरअसल
स्कूल-कालेज जानेवाले यूंथ्स आधे-अधूरे नींद से परेशान है।सनाया जैसे कितने युवक-युवतियों में ये समस्या विकराल हो रहा है।खासतौर से स्कूल-कालेज गोइंग स्टुडेन्टस में
सबसे ज्यादा ऐसे मामले बढ रहे है।

नींद की बीमारी इनसोमैनिया से हो रहे पीड़ीत।

नींद की यह बीमारी काफी हद तक अर्जित की गयी होती है। विशेषज्ञ इस समस्या को तेजी से युवाओं में पनपने का मुख्य कारण उनके अव्यवस्थित जीवन को मान रहे है। बिहार के युवाओं में यह समस्या सुरसा की तरह मुंह बाये दिख रहा है।एक अध्ययन के मुताबिक नींद की इस बीमारी से बिहार के
लगभग 6 फीसदी लड़के व 14 % लड़किया प्रभावित है,जो की ईलाज कराने आ रहे यूंथ्स का एक औसत है।

क्या है कारण।

नवयुवक-नवयुवतियों द्वारा
अत्यधिक मानसिक उर्जा की खपत,कुछ एनर्जी का फिजूल उपयोग,जैसे टिक-टाक मोबाइल ऐप,सोशल मीडिया और नयी जानकारी को प्रदर्शित करने की उनमें होड़ आदी।

पहचानिये कुछ लक्ष्ण।

जो युवा इस समस्या का सामना कर रहे होते हैं उनमें
झुझंलाहट साफ-साफ देखा जा सकता है।उन्हे सामाजिक संवाद और आमने सामने आकर बातचीत से खास परहेज होने लगता है। ऐसे युवा बाध्यकारी रूप से रात में ही अपने सभी जरूरी कार्य निपटाना शान समझते है।नतीजतन उनमें भूख उचटना,चिखना-चिल्लाना,नये दोस्त बनाने की होड़ में पुराने को छोड़ने जैसे व्यवहार भी देखे जा सकते हैं।

नींद की समस्या से जूझ रहे विद्यार्थी में विशिष्ट असर।

जो स्टूडेंट्स ठीक से नही सो पाते उनमें बहुत सारी परेशानींया एक साथ उभरती है। मसलन
पढी हुयी बातें भूलना,आत्मविश्वास में कमी,हर वक्त थके-थके रहना,सप्ताह के अंत में ज्यादा सोना,किसी भी चीज पर जल्दी निर्भर होना,दुसरो की बातो में जल्दी आना,किताबो से दूर होकर आनलाइन ही पढना या निर्भर होना आम रूप से देखा जा सकता है।

संभव हैं समाधान।

अपने जीवन को व्यवस्थित करें।अच्छी नींद आपकी जैविक आवश्यकता है। इसलिए कसरत जरूरी हो जाता है। रात में कुछ पढे और कुछ संगीत की धुन में रमना भी फायदे का सौदा है। अनावश्यक बहस से जरुर बचिये।सांसो को सोने की तैयारी के समय अनुभव करें।अपने माता-पिता के बारे में अच्छा सोचते हुए पलकें मूंदे।
—–लेखक डॉ॰ मनोज कुमार बिहार के सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हैं।
इनका संपर्क नं-9835498113 है।

Ravi sharma

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