मानव सभ्यता के काल से है बिहार का इतिहास — आफिस डेस्क

आफिस डेस्क– बिहार का इतिहास मानव सभ्यता के काल से शुरू होता है.धार्मिक ग्रंथ व्यथा उपनिषद, रामायण,महाभारत और पुराणों में भी बिहार के समृद्ध राज्यों के अस्तित्व की बात उल्लेखित है.बिहार का पूराना नाम विहार है.संभवत: 12वीं शताब्दी के मुगलिया शासकों ने राज्य को बिहार कहना शुरू किया. इसी भूमि पर अशोक, अजातशत्रु, बिम्बिसार, सिक्खों के दशमेश गुरु गोविंद सिंह,राजा जनक,गार्गी,गौतमी, यज्ञ्कल गौतम ,कपिल कंसल से लेकर उपाचार्य मंडन मिश्र ,विद्यावती, महेश ठाकुर सरीखे लोगों ने जन्म लेकर इस भूमि को गौरवान्वित किया है. यह दीगर बात है कि प्रशासनिक स्तर पर बिहार को पहला मुकम्मल चेहरा सुबे के तौर पर 11 मार्च 1585 को मिला. सम्राट अकबर ने अपने शासनकाल में अपनी शासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के उद्देश्य से अपने आदि पते के विभागों को अलग-अलग रूपों में बांटा. आईने अकबरी के अनुसार ऐसे ही एक भाग को 1580 में बिहार नाम देकर हिंदुस्तान के राजनीतिक भूगोल में उसे पहचान देने की कोशिश की गई ,मगर प्रशासनिक स्तर पर बिहार को पहचान मार्च 1585 में मिला.इस्ट इंडिया कंपनी को दीवानी मिलने के बाद कई लोगों की धारणा है कि अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन में बिहार वासियों के सक्रिय भूमिका होने के कारण अंग्रेजों ने बिहार के प्रशासनिक इकाई को खत्म करने का प्रयास करते हुए इसे बंगाल के साथ जोड़ दिया. अट्ठारह सौ सत्तर के दशक से बिहार को बंगाल से अलग करने के लिए आंदोलन तेज हुआ. बिहारियों की हो रही उपेक्षा और उनकी परेशानियों को देखकर उस वक्त के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मूर्ति सुलेमान, बिहार बंधु ,बिहार टाइम्स आदि ने उस परिस्थिति के प्रति आक्रोश व्यक्त किया और बिहार बिहारियों के लिए जैसा वक्तव्य प्रकाशित किया. उस वक्त के समाचार पत्र बिहार बंधु में स्पष्ट कहा गया कि बंगाली बिहारियों की नौकरियां रोजगार ठीक उसी तरह खा रहे है जैसे खेत में कीड़े फसल बर्बाद कर देते हैं. तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर ने भी यह माना कि यह बिहार वासियों के लिए सुविधाजनक स्थिति नहीं है. बंगाल से बिहार को अलग करने के लिए जो आंदोलन चलाए जा रहे थे उनमें मुख्य रूप से सच्चिदानंद सिन्हा, महेश नारायण सिंह आदि भूमिका में थे. बिहार वासियों की उपेक्षा और गिरते हुए शिक्षा के स्तर को देखकर बिहारियों ने बिहार को पृथक राज्य बनाए जाने को लेकर आंदोलन को समर्थन देने लगे.22 मार्च 1912 को ब्रिटिश इंडिया के गवर्नर लॉर्ड हार्डिंग ने सम्राट जार्ज पंचम के निर्देशानुसार बिहार को बंगाल से अलग करने कि अधिसूचना जारी कि.1अप्रैल 1936 को उड़ीसा को बिहार से अलग किया गया जिसके बाद 26 जनवरी 1950 को बिहार को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया.

15 नवंबर 2000 को बिहार ने एक बार फिर विभाजन का दंश झेला और आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के जन्म दिवस पर बिहार से अलग कर झारखंड भारत का 28वां राज्य बना.

बदलते वक्त के साथ शिक्षा के केंद्र का गौरव प्राप्त करने वाले इस राज्य में साक्षरता दर अन्य कई राज्यों से कम हो गई और रोजगार न मिलने के कारण पलायन एक लाइलाज बिमारी बन गई है.

Ravi sharma

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