मुजफ्फरपुर-आसमान से बरसती आग के कहर से दो चार होना कोई नई बात नहीं है.मगर बिते कुछ सालों में गर्मीं ने जो कहर मुजफ्फरपुर में बरपाया है, वह बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है.जापानी इंसेफेलाइटिस के प्रकोप से मासूमों की जान जा रही है.मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी आलोक रंजन घोष और मुजफ्फरपुर एसपी मनोज कुमार के तमाम आश्वासन और सख्त निर्देश के बावजूद कुछ निजी अस्पताल और चिकित्सक इंसानियत को शर्मसार करने पर तुले है.सरकार और जिला प्रशासन का सख्त निर्देश है कि इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को तत्काल निशुल्क चिकित्सकीय सुविधाएं और दवाइयां मुहैया कराई जाए, और प्रशासनिक स्तर पर भी जहां पीड़ित बच्चों की जानकारी मिले उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाए.मगर मुजफ्फरपुर के केजरीवाल अस्पताल समेत कई चिकित्सालयों में इन आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.
पीड़ित बच्चों के परिजनों से इलाज पूर्व पैसा जमा कराया जा रहा है,पैसा नहीं जमा करने की स्थिति में पीड़ित बच्चों को भर्ती नहीं किया जा रहा है और उसके बाद भी पीड़ितों को मरणासन्न हालत में सरकारी अस्पताल भेज दिया जा रहा है,जहां मासूम बच्चे रोज जिंदगी की जंग हार रहे है.ताजा जानकारी के अनुसार कल शुक्रवार को मुजफ्फरपुर के रोहुआ के रहने वाले आलोक राय इंसेफेलाइटिस से पीड़ित अपनी बच्ची शीतांशु को लेकर केजरीवाल अस्पताल पहुंचे थे जहां अस्पताल प्रबंधन ने इलाज पूर्व उनसे जबरदस्ती पैसे जमा करवाएं और थोड़ी देर बाद ही गंभीर हालत में बच्ची को एसकेएमसीएच रेफर कर दिया.जहां इलाज के दौरान आईसीयू में मासूम की मौत हो गई.एक आंकड़े के अनुसार इस खतरनाक अज्ञात बीमारी से अब तक 80 बच्चों की मौत हो चुकी है.और सैकड़ों बच्चे इलाजरत होकर जिंदगी की जंग लड़ रहे है.मौत का आंकड़ा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है.बीते 3 सालों से दिल्ली और पुणे के चिकित्सकीय संस्थानों मे इस रोग पर अनुसंधान हो रहा है मगर नतीजे अब तक सिफर है.पीड़ितों के हाथ अब तक पेरासिटामोल और ओआरएस ही है.केंद्र सरकार से भी लगातार आश्वासन मिल रहे हैं, मगर यह बात शायद सरकार को नहीं समझ आ रही है आश्वासनों के भरोसे जिंदगी की जंग नहीं जीती जाती.हालांकि राज्य सरकार और जिला प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद है मगर कुछ चिकित्सकों और चिकित्सालयों की शायद अंतर आत्मा मर चुकी है.अब शायद उनके खुद के बच्चे की मौत ही उसे जगा पाए.
Report By Manish Tiwari
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