भेदभाव को मिटाने वाला पर्व है होली – अरविन्द तिवारी

आफिस डेस्क – होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला हिंदू धर्म के मुख्य त्यौहारों में से एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है जिसे हर धर्म में मनाया जाता है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है जो आज विश्व भर में उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाने लगा है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि के अगली सुबह यानि कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होली मनायी जाती है जबकि पूर्णिमा को होलिका दहन होता है। इस पर्व को देश भर में बेहद धूमधाम के साथ मनाया जाता है। होली को कई जगह धुलेंदी भी कहा जाता है। मथुरा-वृंदावन और ब्रज में जिस तरह से होली मनाई जाती है वो देश भर में नामी है। होली में लोग घरों में तरह तरह के पकवान बनाते हैं। होली वाले दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर रंग लगाकर होली की शुभकामनायें देते हैं। रंग और प्रेम का त्यौहार होली पुराने गिले-शिकवों को भुलाकर एक दूसरे को अबीर- गुलाल लगाते हुये बधाई का दिन है। होली खेलने के बाद दोपहर में लजीज व्यंजनों का आनंद लिया जाता है। देश के अलावा विदेशों में भी नई उमंग और खुशियों के साथ मनाया जाने वाला होली का यह पर्व असत्‍य पर सत्‍य की जीत का प्रतीक है। होली भेदभाव को मिटाने वाला पर्व है। भारत में अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न तरीके से होली का पर्व मनाया जाता है। चूंकि यह प्रसंग राधा-कृष्ण से जुड़ा हुआ माना जाता है इसलिये मथुरा – वृंदावन और बरसाने में इस पर्व की शोभा देखने लायक होती है। यहां पर होली काफी दिन पहले ही शुरू हो जाती है। जिसमें अलग-अलग तरीकों से होली मनायी जाती है। कहीं लट्ठमार होली तो कहीं फूलों से भी होली खेली जाती है। इसके अलावा हमारे देश में विविध ढंग से होली मनायी और खेली जाती है। जैसे कि कुमाऊं की बैठकी होली , बंगाल की दोल-जात्रा , महाराष्ट्र की रंगपंचमी , गोवा का शिमगो , हरियाणा के धुलंडी में भाभियों द्वारा देवरों की फजीहत , पंजाब का होला-मोहल्ला , तमिलनाडु का कमन पोडिगई , मणिपुर का याओसांग , एमपी मालवा के आदिवासियों का भगोरिया आदि। लेकिन ब्रजभूमि की होली; विशेषकर बरसाने की लट्ठमार होली तो  पूरी दुनियां में प्रसिद्ध है।

होली की शुरुआत
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माना जाता है कि अबीर और गुलाल से होली खेलने का रिवाज बहुत पुराना है। पौराणिक कथाओं अनुसार रंग-गुलाल की यह परंपरा राधा और कृष्ण से शुरु हुई थी। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण बाल उम्र में माता यशोदा से अपने सांवले रंग की शिकायत किया करते थे। वे कहते थे कि मां राधा इतनी सुंदर और गोरी है और मैं इतना काला क्‍यों हूं ? माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्‍ण को प्रसन्न करने के लिये सुझाव दिया कि वह राधा को जिस रंग में देखना चाहते हैं उसी रंग से राधा को रंग दें। भगवान श्रीकृष्‍ण को अपनी माता का ये सुझाव पसंद आया। स्वभाव से चंचल और नटखट श्रीकृष्ण ने राधा को कई रंगों से रंग दिया और श्री अपने मित्रों के साथ उन्होंने गोपियों को भी जमकर रंग लगाया। माना जाता है कि इसी दिन से होली पर रंग खेलने की परंपरा शुरु हो गई।

पौराणिक कथा
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पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप स्वयं को परमशक्तिशाली मानता था। इसी वजह से उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया था कि वे किसी भगवान की पूजा नहीं करेंगे , वही उनका भगवान है । लेकिन हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्लाद नारायण का परम भक्त था। वह हर समय श्रीहरि का नाम जपता रहता था। अपने बेटे को भगवान की भक्ति में लीन देखकर हिरण्यकश्यप क्रोध से लाल हो जाता था। उसने कई बार बेटे को प्रभु की भक्ति से हटाने के प्रयास किया , लेकिन प्रह्लाद तो हर पल श्रीहरि में ही लीन रहता था। कई प्रकार से प्रहलाद को मारने की योजनाओं में असफल होने पर हिरण्यकश्यप ने हारकर अपनी बहन होलिका से मदद मांगी और होलिका से प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठने को कहा जिससे प्रह्लाद उसमें जलकर भस्म हो जाये। दरअसल हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था जिसकी वजह से अग्नि उसे छू भी नहीं सकती थी। होलिका अग्नि में प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ गई , लेकिन प्रह्लाद की भक्ति की विजय हुई और उस अग्नि में होलिका ही जलकर भस्म हो गई और हरि भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका ना हुआ। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक इसी कहानी को कहा जाता आ रहा है और होली के समय इसे याद किया जाता है।

Ravi sharma

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