जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज पंचतत्व में विलीन

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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रायपुर – जैन मुनि आचार्य प्रवर विद्यासागर महाराज डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी पर्वत पर आज पंचतत्व में विलीन हो गये। इससे पहले जैन मुनि ने शनिवार की देर रात्रि लगभग ढाई बजे सल्लेखना के माध्यम से समाधि (देह त्याग) प्राप्त की थी। बताते चलें सल्लेखना एक जैन धार्मिक प्रथा है जिसमें आध्यात्मिक शुद्धि के लिये स्वैच्छिक आमरण उपवास शामिल है , यह स्वेच्छा से मृत्यु तक उपवास करने की प्रथा है। राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरी तीर्थ पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे और लगभग छह महीने से डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में ही रूके हुये थे। आचार्यश्री ने विधिपूर्वक सल्लेखना धारण कर ली थी , उन्होंने पूर्ण जागृत अवस्था में आचार्य पद का त्याग कर तीन दिन का उपवास ग्रहण कर तीन दिन का अखण्ड मौन धारण करते हुये आहार और प्रत्याख्यान बंद कर दिया था। जैन मुनि के देह त्याग करने पर पूरे देश के जैन समाज मे शोक की लहर है। पूरे देश से हजारों की संख्या मे जैन समाज के लोग उनके अंतिम दर्शन करने के लिये चन्द्रगिरी तीर्थ स्थल डोंगरगढ पहुंचे हुये थे। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैन मुनि से मिलने डोगरगढ पहुचे थे। उनकी समाधि की सूचना पर प्रधानमंत्री सहित कई राजनेताओं ने शोक व्यक्त कर किया। सोशल मीडिया पोस्‍ट में पीएम मोदी ने कहा आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का ब्रह्मलीन होना देश के लिये एक अपूरणीय क्षति है। लोगों में आध्यात्मिक जागृति के लिये उनके बहुमूल्य प्रयास सदैव स्मरण किये जायेंगे। वे जीवनपर्यंत गरीबी उन्मूलन के साथ-साथ समाज में स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे निरंतर उनका आशीर्वाद मिलता रहा।‌पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में उनसे हुई भेंट मेरे लिये अविस्मरणीय रहेगी , तब आचार्य जी से मुझे भरपूर स्नेह और आशीष प्राप्त हुआ था। समाज के लिये उनका अप्रतिम योगदान देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा। उनकी संवेदनायें महाराज जी के असंख्‍य श्रद्धालुओं के साथ हैं।

छग में आधे दिन का राष्ट्रीय शोक
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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने ट्वीट करते हुये लिखा – वर्तमान के वर्धमान कहे जाने वाले विश्व प्रसिद्ध दिगंबर जैन मुनि संत परंपरा के आचार्य विद्यासागर महाराज जी आज ब्रह्मलीन हो गये। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा पवित्र आत्मा के सम्मान में आज आधे दिन का राजकीय शोक रखा गया है। इस दौरान राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा तथा कोई राजकीय समारोह/कार्यक्रम आयोजित नहीं किये जायेंगे।

आचार्य का संक्षिप्त परिचय –
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आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में कन्नड़ बोलने वाले जैन परिवार में हुआ था। जिस घर में उनका जन्म हुआ था अब वह एक मंदिर और संग्रहालय बन चुका हैं। इनके पिता मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने और उनकी माता श्रीमती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी। उनके भाई अनंतनाथ , शांतिनाथ और महाबीर ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर , मुनि समयसागर एवं मुनि उत्कृष्ट सागर कहलाये। आचार्य के बचपन का नाम विद्यासागर था और 30 जून 1968 में 22 साल की उम्र में उन्होंने दिगंबर साधु के रूप में शुरुआत की थी। उन्हें आचार्य की उपाधि वर्ष 1972 में मिली थी।ये संस्कृत , प्राकृत सहित विभिन्न भाषाओं हिन्दी , मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाये की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिये अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं। इनके शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागरज ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है। आचार्य विद्यासागर छात्रवृत्ति, आत्‍मसंयम और कई घंटों तक गहन चिंतन के लिये जाने जाते थे। हालांकि उनका जन्‍म कर्नाटक में हुआ था, लेकिन उन्‍होंने आध्‍यात्मिक शिक्षा राजस्‍थान में ग्रहण की और अपना ज्‍यादातर समय बुंदेलखंड क्षेत्र में व्‍यतीत किया। इस क्षेत्र में शिक्षा और धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा देने का श्रेय आचार्य विद्यासागर जी महाराज को जाता है। इन्होंने हाइकु कवितायें और महाकाव्य हिंदी कविता मुकामति भी लिखी है। ये नमक, चीनी, दूध, घी, तेल और जैन धर्म में पारंपरिक रूप से प्रतिबंधित खाद्य पदार्थों जैसे आलू व प्याज आदि का सेवन नहीं करते हैं। वे एक समय भोजन करते थे और जमीन पर या लकड़ी के तख्त पर बिना गद्दा या तकिया के ही शयन करते थे।

अगले आचार्य होंगे समयसागर
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विगत दिवस 06 फरवरी मंगलवार को दोपहर में मुनिराजों को अलग भेज कर निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागर से चर्चा करते हुये आचार्यश्री विद्यासागर ने संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली थी और उसी दिन आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने आचार्य पद के योग्य प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि समयसागर महाराज को योग्य समझा और तभी उन्हें आचार्य पद दिया जावे ऐसी घोषणा कर दी थी।

Ravi sharma

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