अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी — प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र पुरीधाम (उड़ीसा) में विश्व प्रसिद्ध नौ दिनों तक चलने वाली श्रीजगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव का शुभारंभ अनन्त श्रीविभूषित गोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रुनिश्चलानंद जी महाराज की उपस्थिति में प्रारंभ होता है। पहले दिन भगवान जगन्नाथ अपने ज्येष्ठ भ्राता भगवान बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ जगन्नाथ मंदिर से निकलकर जगन्नाथपुरी का भ्रमण करते हुये अपने मौसी घर गुंडीचा मंदिर गये थे। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को ‘आड़प-दर्शन’ कहा जाता है। यहां सात दिन विश्राम करने के बाद 08वें दिन आषाढ़ शुक्ल दशमी को सभी रथ पुन: मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं। जिसके अनुसार आज भगवान श्रीजगन्नाथ अपने धाम जगन्नाथपुरी में लौट आयेंगे।
इस रथ यात्रा के संदर्भ में ये भी कहा जाता है कि पुरी के लोग भगवान जगन्नाथ को अपना राजा और स्वयं को प्रजा मानते हैं। इस कारण से भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर वर्ष में एक बार अपनी प्रजा का हाल जानने के लिये अपने धाम से निकलकर उनके सुख-दुख जानते हैं।
तीनों रथों की जानकारी
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष है जिसमें 16 पहिये लगे होते हैं। इसे गरुड़ध्वज भी कहा जाता है। रथ में लगे काष्ठों की संख्या 832 होती है। इस रथ पर लगे ध्वज को त्रिलोक्यमोहिनी कहा जाता है। यह रथ 45.6 फीट ऊँचा होता है । रथ की लंबाई चौड़ाई 34 फीट 06 इंच होती है । रथ के रक्षक का नाम गरूड़ है । रथ में लगे रस्से का नाम शंखचूड़ नागुनी है । यह रथ लाल और पीले रंग के कपड़े से ढंका होता है। भगवान जगन्नाथ के सारथी का नाम दारुक है। इसके रथ के घोड़े का नाम वराह, गोवर्धन, कृष्णा, गोपीकृष्णा, नृसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान, रूद्र है।
भगवान जगन्नाथ के भाई बलराम के रथ का नाम तालध्वज है जो 44 फीट ऊँचा होता है । रथ की लंबाई चौड़ाई 33 फीट होती है जिसमें 14 पहिये होते हैं। इसके कुल काष्ठों की संख्या 763 होती है। रथ के रक्षक का नाम वासुदेव है। रथ में लगे रस्से का नाम वासुकी नाग है पताके का रंग उन्नानी है यह लाल और हरे कपड़े से ढंका रहता है। रथ के घोड़े का नाम तीव्र, घोर, दीर्घाश्रम,स्वर्ण है और इसके सारथी का नाम मताली है।
भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन (देवदलन) है जो 43 फीट ऊँचा होता है और उसमें 12 पहिये होते हैं। इसकी लंबाई चौड़ाई 31 फीट 06 इंच होती है । इनके रथरक्षक का नाम जयदुर्गा है।रथ के रस्से का नाम स्वर्णचूड़ नागुनी है रथ के पताके का रंग नदंबिका है यह लाल और काले रंग के कपड़े से ढंका रहता है। देवी सुभद्रा के सारथी का नाम अर्जुन है। और इस रथ के घोड़े का नाम रूचिका, मोचिका, जीत, अपराजिता है ।
ये तीनों रथ नीम की लकड़ियों से बनाये जाते हैं इनको दारु कहा जाता है। रथ के निर्माण में कील या किसी धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। नीम की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी से शुरू होती है और अक्षय तृतीया से रथ निर्माण शुरू होता है।